मंगल भवन अमंगल हारी
द्रबहु सुदसरथ अचर बिहारी
सीता राम चरित अति पावन
मधुर सरस अरु अति मनभावन
पुनि पुनि कितनेहू सुने सुनाये
हिय की प्यास भुजत न भुजाये
ब्याकुल दशरथ के लगे
रच के पच पर नैन
रच बिहीन बन बन फिरे
राम सिया दिन रैन
विधिना ना तेरे लेख किसी की
समझ ना आते हैं
जन जन के प्रिय राम लखन सिया
वन को जाते हैं
जन जन के प्रिय राम लखन सिया
वन को जाते हैं
हो विधिना ना तेरे लेख किसी की
समझ ना आते हैं
एक राजा के रज दुलरे
वन वन फिरते मारे मारे
एक राजा के रज दुलरे
वन वन फिरते मारे मारे
होनी हो कर रहे करम गति
डरे नहीं क़ाबू के टारे
सबके कस्ट मिटाने वाले
कस्ट उठाते हैं
जन जन के प्रिय राम लखन सिया
वन को जाते हैं
हो विधिना ना तेरे लेख किसी की
समझ ना आते हैं
उभय बीच सिया सोहती कैसे
ब्रह्म जीव बीच माया जैसे
फूलों से चरणों में काँटे
विधिना क्यूँ दुःख दिने ऐसे
पग से बहे लहू की धारा
हरी चरणों से गंगा जैसे
संकट सहज भाव से सहते
और मुसकते हैं
जन जन के प्रिय राम लखन सिया
वन को जाते हैं
हो विधिना ना तेरे लेख किसी की
समझ ना आते हैं
हो विधिना ना तेरे लेख किसी की
समझ ना आते हैं
जन जन के प्रिय राम लखन सिय
वन को जाते हैं
जन जन के प्रिय राम लखन सिया
वन को जाते हैं
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