सफलता का रहस्य (bhakti hindi song )

                              


आओ कथा सुने देवों की, असुरों के अज्ञान की |
त्याग, धैर्य, सहयोग, चतुरता, साम्यक बुद्धि ज्ञान की ||
देव-असूर दोनों भाई थे किन्तु लड़ा करते थे अज्ञानी |
बुद्धिमान देवों से सर्वदा असूर हारते थे अभिमानी ||


जनकराज ने एक बार था दोनों को ही साथ बुलाया |
दोनों भोजन करे साथ में, और परीक्षा हो कहलाया ||
जो हारेगा छोटा होगा, जीतेगा सो बड़ा बनेगा |
समाधान होगा इस विधि से, आपस का यह युद्ध थमेगा ||
देव और राक्षस दोनों ने, आमन्त्रण स्वीकार किया |
पहुच जनकपुर ” कैसे जीते” इस पर गुप्त विचार किया ||
अगले ही दिन भोजन पर प्रतिस्पर्धा की घड़ी आ गईं |
सुस्वादु भोजन तो था पर एक समस्या कड़ी आ गईं ||

देव असूर दोनों का दल जब भोजन करने को आया |
जनकराज ने सादर उनकों आसन पर था बिठलाया ||
राजा बोले, भोजन पाए, शर्त किन्तु यह ध्यान रहे |
उसी शर्त के साथ परीक्षा जुड़ी हुई यह ज्ञान रहे ||
दोनों ने स्वीकार किया और बात जनक की थी मानी |
सोचा यही की हम जीतेंगे, हम ग्यानी वो अज्ञानी ||
और जनक के कहने पर फिर सबने अपने हाथ बंधाये |
इस प्रकार की कोहनी से वे हाथ मोड़ ना पावे ||

फिर थाली में सबके सम्मुख ढेर लड्दुओ का आया |
जिन्हें देखकर मुख में पानी भरा कि मन था भरमाया ||
देव मौन और शांत बैठकर लगने सोचने को गंभीर |
किन्तु असूर भूखे व्याकुल थे, खाने को हो गये अधीर ||
कर कर लम्बे हाथ राक्षस लगे लड्डू उठाने थे |
और उन्हें वे ऊपर उछाल कर लड्डू लगे थे वे खाने थे ||
लेकिन गिर ऊपर से लड्डू ऊपर से मुख में ना आ पाते थे |
कोई कोई मुख पर पड़ता बिखर शेष वे जाते थे ||
गिर कर लड्डू मुख पर उनको सबको लगे हसाने थे |
छत की ओर खुले मुख उनको सबको लगे हंसाने थे ||
आखिर थके राक्षस सारे, भूखे रहे बिचारे वे |
किया प्रयत्न अकेलों ने था, इसलिए थे वे हारे ||

उधर देवताओं ने आपस में, आसन बदल लिए थे ||
दो-दो जोड़ो में बैठ, सम्मुख मुख किये थे ||
दो-दो मिलकर एक थाल में लड्डू लगे थे वे खाने थे |
एक दुसरे के मुख पे देकर, भोजन लगे वो पाने थे ||
कुछ ही देर में सबने मिलकर छक कर लड्डू खाए थे |
सहयोग से पेट भरा और विजयी होकर आए थे ||
सुनि कहानी तुमने बोलो, क्या बात समझ में आई |
कहो कौन से गुण के कारण देवों ने जय पाई ||


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